*अद्भुत एवं अलौकिक कलाकृतियां से भरा विराट मंदिर को देख लोग भी हतप्रभ रह जाएंगे*
शहडोल जिला मध्यप्रदेश

महाकाल लोक लोकार्पण विशेष
अद्भुत एवं अलौकिक कलाकृतियों से भरा है विराट मंदिर
रिपोर्टर – चंद्रभान सिंह राठौर (संभागीय ब्यूरो चीफ)
शहडोल/09 अक्टूबर 2022/
ज्योर्तिलिंग श्री महाकालेश्वर मंदिर उज्जैन में दर्शनार्थियों की सुविधा, विस्तार और सौन्दर्यीकरण के निमित्त नवनिर्मित ‘महाकाल लोक’ के प्रथम चरण का लोकार्पण 11 अक्टूबर 2022 को सायं 5 बजे देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के करकमलों से होगा। महाकाल मंदिर में सृजन, सौन्दर्य और सुविधाओं का नव संगम ‘महाकाल लोक’ के निर्माण से प्रदेश का जन-जन उल्लासित है। उज्जैन में विराजित भगवान शंकर को ‘महाकाल’ के नाम से जाना जाता है, मध्यप्रदेश में कई ऐसी अमूल्य धरोहरें हैं, जो प्रदेश ही नहीं बल्कि देश का नाम भी रोशन करती हैं। ऐसा ही राजा विराट की नगरी विराटनगर अर्थात शहडोल में भी एक ऐसा ही ऐतिहासिक मंदिर है, जो अपने अंदर कई सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, कलात्मक खूबसूरती बटोरे हुए है। कल्चुरी कालीन इस मंदिर को लोग “विराट मंदिर” के नाम से जानते है। इसकी अद्भुत एवं अलौकिक कलाकृतियां से भरा विराट मंदिर को देख लोग भी हतप्रभ रह जाएंगे।
विराट मंदिर का इतिहास
विराट मंदिर का इतिहास 10वीं,11वीं शताब्दी का है.कलचुरी राजा युवराज देव प्रथम ने मंदिर का निर्माण कराया था। विराट मंदिर पूरी तरह से भगवान शिव को समर्पित है.मंदिर की लंबाई 46 फीट, चौड़ाई 34 फीट और ऊंचाई 72 फीट है। मंदिर का तल विन्यास महामंडप, अंतराल वर्गाकार गर्भगृह में विभाजित है। ये मंदिर सप्त रची शैली, वास्तु शिल्पन में शिल्पित किया गया है.विराट मंदिर में स्थित ये शिवलिंग अति विशिष्ट है। जो आकर्षण का केंद्र हैं.शिवलिंग पर पूरे ब्रह्मांड का एक प्रतीक स्वरूप में अंकित है।
अद्भुत है विराट शिव मंदिर
अद्भुत है विराट शिव मंदिर। शहडोल जिले के इस विराट शिव मंदिर को लेकर पुरातत्वविद कहते हैं कि शहडोल संभाग का यह अति विशिष्ट शिव मंदिर है, यह विराटेश्वर शिव मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर का निर्माण कल्चुरी नरेश युवराज देव प्रथम ने करवाया था। इस मंदिर का निर्माण 10 वीं 11 वीं सदी ईस्वी में कराया गया था। जहां इतने बड़े मंदिर के गर्भगृह में छोटे शिवलिंग हैं, जो अपने आप में अनूठा है। विराट नगरी अनेक ऋषि मुनियों की तपोस्थली रही है। इसलिए विराट नगरी धार्मिक नगरी के साथ-साथ एक आध्यात्मिक केन्द्र है। ज्योतिषाचार्य के मत के अनुसार इस शिवलिंग के दर्शन कर लेने मात्र से ही बारह ज्योतिर्लिंगों के दर्शन का लाभ मिल जाता है। इसलिए छोटी शिवलिंग है और शिवलिंग छोटी होने से 12 ज्योतिर्लिंगों उसमें समाहित है, इसलिए इसका विशेष महत्व है। विराटनगर की भौगोलिक संरचना चारों ओर वनो में आच्छादित है, यहाँ विभिन्न औषधीय वृक्ष भी पाए जाते हैं, यहां साल (सरई) के पेड़ बहुतायत में पाए जाते हैं। विंध्य और सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला से घिरा विराटनगर जिसके पड़ोस में अमरकंटक वन आच्छादित, नैसर्गिक और प्राकृतिक छटाओं से आच्छादित है।
विराट नगरी में हर वर्ष 14 जनवरी अर्थात मकर संक्रांति के दिन से 7 दिनों का मकर संक्रांति के मेले का आयोजन किया जाता है, जो बहुत ही आकर्षक एवं लोगों का मन मोह लेने वाला मेला होता है, जहां दूर-दूर से लोग आकर मेले का लुफ्त उठाते हैं।
विराट मंदिर की कलाकृति एवं भव्यता करती है आकर्षित
विराट मंदिर पूर्वाभिमुख मंदिर शिव को समर्पित है, इसके गर्भ गृह में शिवलिंग जलहरी प्रतिस्थापित है, इसके गर्भ गृह में जो द्वार शाखाएं हैं वह देवी-देवताओं युक्त हैं, जिसमें मध्य में नटेश शिव बाईं ओर गणेश और दाईं और सरस्वती का अंकन है, जो अति विशिष्ट रूप में है। जिसे देखने आने वाले देखते ही भाव विभोर हो जाते है। इसके अलावा भी अंदर अन्य प्रतिमाएं भी रखी हुई है देवी देवताओं की जो अद्भुत हैं। विराट मंदिर नैसर्गिक भव्यता, सांस्कृतिक विरासत, पर्यटन, जनजातीय परम्परा, समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर कला के साथ विराट नगर क्षेत्र में पाए जाने वाले औषधीय पौधे से नेत्र शक्तिवर्धक अर्क प्राप्त होता है यहां अनेकों औषधीय जड़ी-बूटी पाई जाती है। यहाँ का वातावरण इतना सुरम्य, मनोरम है कि यहाँ सहज ही लोग और प्रकृति प्रेमी खिचे चले आते हैं। विराटनगर में में ठहरने और भोजन के लिए मध्यप्रदेश पर्यटन निगम का हालीडे होम, निजी होटल, आश्रम, धर्मशालाएं, कॉटेज आदि संचालित है।
विराट मंदिर की कलात्मकत कलाकृति की विशेषताएं
विराट मंदिर की कलात्मक कलाकृति खजुराहो के मंदिरों की यादें ताजा हो जाएगी। मंदिर के कलाकृतियों की बात ही अनोखी एवं निराली है जो पर्यटकों का मन मोह लेती है। विराट मंदिर के मंदिर के बाह्य भाग में मुख्यतः जंघा भाग में जो प्रतिमाएं हैं, वह तीन क्रम पर हैं, जिसमें शिव के विभिन्न स्वरूपों जो उनके विभिन्न अवतार हैं और उनका परिवार है। दिग्पालों की प्रतिमाएं हैं और विष्णु के भी विभिन्न स्वरुप है। इस मंदिर में ब्रह्मा, विष्णु, महेश त्रिदेव का भी अंकन है। इसमें देवी गौरी व नवदुर्गाओं के भी कुछ स्वरूपों का अंकन किया गया है। यह विशिष्ट रूप से विद्यमान हैं। अलग-अलग तरह के अप्सराओं का भी मंदिर में शिल्पन देखने को मिलता है. जो विभिन्न प्रकार की अप्सराएं है। वो भी शिल्पित कर मंदिर में लगाई गईं हैं, मनुष्य जीवन में प्राचीन काल से ही मनुष्य को चार आश्रम में ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यास और उसी क्रम में चार पुरुषार्थ अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष का कॉन्बिनेशन करके ही इन प्रतिमाओं को इस मंदिर में लगाया गया है।
विराट मंदिर की भव्यता को देखकर खजुराहो की यादें हो जाएंगी ताजा
विराट मंदिर की बनावट ऐसी है कि विराट मंदिर की भव्यता को देखकर अनायास ही खजुराहो की यादें ताजा हो जाएंगी। खजुराहो में चंदेल शासकों ने खजुराहो के मंदिर बनवाए थे, महाकौशल या विंध्य क्षेत्र में कलचुरी नरेशों ने ये मंदिर बनवाए थे। 9वीं सदी से लेकर 12वीं सदी के बीच यहां पर शिल्पन का कार्य काफी मात्रा में हुआ था। जिसमें अति विशिष्ट मंदिर बनाए गए और प्रतिमाएं गढ़ी गईं. यह मंदिर भी 10 वीं 11 वीं सदी ईस्वी के हैं, ये भी खजुराहो के समकालीन ही है, जैसी खजुराहो के मंदिरों में प्रतिमा स्थापित कर लगाई गई हैं। ठीक उसी तरह से यहां भी प्रतिमाओं पर शिल्पन कर अंकन किया गया है।
विराटनगर के समग्र विकास के लिए भारत सरकार एवं राज्य सरकार द्वारा सार्थक प्रयास किए जा रहे हैं आने वाले समय में यहां का स्वरूप और भी आकर्षक होगा। कभी पधारिये विराट नगर, अलौकिक आनन्द की अनुभूति करिये, धर्म क्षेत्र का पुण्य लाभ भी अर्जित कीजिए।




