जनकपुर वन क्षेत्र में चार वर्षों से चल रही हल्दू की अवैध कटाई, ग्रामीणों ने उठाई कार्यवाही की माँग
तहसील भरतपुर जिला मनेंद्रगढ़ छत्तीसगढ़

जनकपुर वन क्षेत्र में चार वर्षों से चल रही हल्दू की अवैध कटाई, ग्रामीणों ने उठाई कार्यवाही की माँग
(पढिए जिला एमसीबी ब्यूरो चीफ मनमोहन सांधे की खास खबर)
भरतपुर/जनकपुर (छत्तीसगढ़)।
वन संपदा की रक्षा के नाम पर बनाई गई
सरकारी व्यवस्था को ठेंगा दिखाते हुए *जनकपुर उपवनमंडल के कुंवरपुर परिक्षेत्र अंतर्गत कंजिया परिसर में बीते चार वर्षों से लगातार हल्दू की अवैध गीली लकड़ी की कटाई की जा रही है। कम्पार्टमेंट नंबर 1261* में दिनदहाड़े पेड़ों का दोहन कर उन्हें मध्य प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में बेचा जा रहा है परंतु वन विभाग के अधिकारी मूकदर्शक बने हुए हैं।
स्थानीय ग्रामवासियों* का आरोप है कि उन्होंने कई बार विभागीय अधिकारियों को इस अवैध कटाई की जानकारी दी
इसके बावजूद ना तो कोई प्रभावी कार्रवाई हुई*, और ना ही अवैध गतिविधियों पर रोक लगाई गई।
ग्रामीणों ने यह भी बताया कि कई बार उनके सहयोग से गीली लकड़ी को जप्त भी करवाया गया
परंतु हर बार मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। उनका सीधा आरोप है कि वन विभाग के कुछ अधिकारी और कर्मचारी स्वयं इस अवैध कारोबार में संलिप्त हैं, जिससे इस लकड़ी माफिया को संरक्षण प्राप्त हो रहा है।
सूत्रों के अनुसार, एसडीओ, रेंजर, डिप्टी रेंजर और मुंशी समेत अन्य जिम्मेदार अधिकारियों को *इस अनियमितता की जानकारी दी जा चुकी है लेकिन चार सालों से लगातार शिकायतों के बावजूद अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है।
ग्रामीणों का कहना है कि अगर यही स्थिति बनी रही, तो आने वाले वर्षों में जंगल पूरी तरह से उजड़ जाएगा और पर्यावरण पर गहरा असर पड़ेगा।
हल्दू एक बहुमूल्य लकड़ी मानी जाती है जिसका उपयोग फर्नीचर और निर्माण कार्यों में बड़े पैमाने पर होता है इसी कारण इसकी अवैध कटाई और तस्करी का नेटवर्क लगातार सक्रिय बना हुआ है।
क्षेत्रीय वन अमले की मौन स्वीकृति से यह गिरोह निडर होकर पेड़ों की कटाई कर रहा है और जंगल से कच्ची लकड़ी निकाल कर ट्रैक्टर व ट्रकों के माध्यम से मध्य प्रदेश भेज रहा है।
*प्रशासनिक चुप्पी और विभागीय निष्क्रियता को लेकर अब ग्रामीणों में भारी आक्रोश है। उनका कहना है कि यदि शीघ्र कोई कठोर कार्रवाई नहीं की गई, तो वे *जन आंदोलन और धरना प्रदर्शन* करने को मजबूर होंगे। साथ ही इस मामले को वे *राज्य शासन और राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) तक भी पहुँचाने की चेतावनी दे चुके हैं।
अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या वन मंत्री और शीर्ष प्रशासन इस गंभीर मामले का संज्ञान लेकर दोषियों के विरुद्ध सख्त कदम उठाते हैं, या फिर जंगल की यह लूट यूँ ही जारी रहेगी।