*चुनावी संग्राम के बीच लोगों को याद आई 5 साल पहले बीजेपी कार्यालय में हुई घमासान लड़ाई*
अनुपपुर जिला मध्यप्रदेश

क्या नेता ऐसे होते हैं?
प्रश्न चिन्ह उठना लाजमी?
चुनावी संग्राम के बीच लोगों को याद आई 5 साल पहले बीजेपी कार्यालय में हुई घमासान लड़ाई
बीजेपी नेताओं और कार्यकर्ताओं को अभद्र टिप्पणी करके कैसे निकाला था बीजेपी कार्यालय से बाहर
रिपोर्ट – संभागीय ब्यूरो चीफ के साथ विकास सिंह राठौर
अनूपपुर/ अनुपपुर जिले की प्रमुख नगर पालिका परिषद में इन दिनों चुनावी संग्राम तेज हो चला है। राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक पार्टियों ने यहां अपना – अपना कार्यालय बना कर उम्मीदवार घोषित कर चुनाव प्रचार तेज ही किया कि जनता ने पुरानी बातों को याद किया

सूत्रों से मिली जानकारी अनुसार जनता ने चुनावी बिगुल बजते और चुनावी माहौल गर्म होते ही जनता ठीक 5 शाल पहले बीजेपी कार्यालय में हुए कांड की याद करने लगे। बता दें कि हर गली, मुहल्ले, नुक्कड़, पान की दुकान पर यह चर्चा आम हो गई की वर्तमान समय में जो बीजेपी ने नगर परिषद चुनाव हेतु प्रमुख कार्यालय बनाया गया है वो 5 शाल पहले भी बीजेपी के नेताओ ने वहीं उसी जगह कार्यालय का उद्घाटन कर चुनावी रणनीति बना ही रहे थे कि तभी टिकट बंटवारे का समय आया और वर्तमान अध्यक्ष नवरत्नि शुक्ला को बीजेपी से टिकट नहीं मिला इससे क्रोधित हो कर उनके पति परमेश्वर ने बीजेपी कार्यालय में जाके बीजेपी के झंडे कुर्सियां गद्दे साथ ही साथ तथाकथित बीजेपी के बड़े – बड़े नेताओं का सम्मान करते हुए उनकी विदाई कर जो तांडव मचाया वो लोग आज तक नही भूल पाए हैं।
लोगों का कहना है की इतना सब कुछ होने के बाद भी बीजेपी के ही कुछ नेताओ ने बीजेपी का खाना तो खाया पर बजाया किसका ये किसी से छिपा नहीं है
और निर्दलीय प्रत्याशी को चुनाव जितवा कर बीजेपी की मलिया मेट कर दी थी। या यूं कहा जाय कि भाजपा कार्यकर्ता और पार्टी के प्रत्यासियों और लोगों को परिषद् और नगर से उखाड़ बाहर फेंकने कि रणनीति पर कार्य कर रहे थे।
निर्दलीय प्रत्यासियों के रूप में चुनाव जीतने के बाद जिस – जिस नेताओ को ससम्मान कार्यालय से विदा किया गया था वो शाल श्रीफल लेकर उनकी चौखट पर पहुंचकर उनको बीजेपी में शामिल करवाने की कवायत में जुट गए। उस समय भी जनता के मन में एक ही प्रश्न हिचकोले खा रहा था क्या नेता ऐसे ही होते है, क्या इनका कोई जमीर नही होता है, क्या इनका कोई आत्म सम्मान नही होता है।
खैर जनता को इस प्रश्न का उत्तर कभी मिला ही नहीं। लोगो ने उसे भूलना चाहा तभी विधानसभा चुनाव 2018 आ गया नगर परिषद जैतहरी में जो भी बीजेपी के निष्ठावान कार्यकर्ता थे उन्होंने बीजेपी के लिए अटूट मेहनत की पर न अनुपपुर से बीजेपी का विधायक जीता न ही राज्य में बीजेपी की सत्ता वापसी हुई।
राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी तभी एक बार फिर अध्यक्ष पति ने बीजेपी नेताओं का सम्मान करते हुए कॉन्ग्रेस के नेताओ से हाथ मिलाते हुए कॉन्ग्रेस का दामन थाम लिया। 15 महीने नगर परिषद ने नगर की जनता का खूब विकास किया इतना की लोगो को लगा की ऐसा न हो बाढ़ न आ जाए। तभी राज्य सरकार पर मार्च 2020 को खतरा मंडराया और राज्य में सत्ता परिवर्तन का खेल खेला गया जिसमें फिर एक बार बीजेपी सत्ता में आ गई उसी दिन नगर परिषद अध्यक्ष पति ने एक बार फिर बीजेपी नेताओं का सम्मान किया और बीजेपी नेताओं ने नगर परिषद अध्यक्ष पति का सम्मान करते हुए बीजेपी में सामिल कर लिया। पर जैतहरी की जनता को समझ नही आ रहा था कि हो क्या रहा है ऐसा शायद ही कभी भारतीय राजनीति के इतिहास में कभी भी ऐसा कुछ हुआ हो लोग हक्के बक्के थे, पर विकास तो प्राथमिकता थी, जहा दम वहा हम।
इतना तो लोग समझ पा रहे थे पर लोग उन नेताओ को नही समझ पा रहे थे जिनका सम्मान दो तरीकों से किया जा रहा था एक वो जब पार्टी छोड़ते समय एक तब जब पार्टी में वापस आना था तब।
खैर जनता तब तक जान चुकी थी की राजनीति में सब कुछ संभव है।
3 साल गुजर जाने के बाद जब नगर में वही नगर परिषद का चुनाव फिर आया और बीजेपी कार्यालय वही बना तो जनता के मन में फिर वही प्रश्न वापस हिचकोले लेता दिखा की क्या नेता ऐसे होते हैं। हालाकि बीजेपी ने फिर वही गलती दोहराते हुए कुछ ऐसे प्रत्याशियों को अपने वार्ड का चेहरा बनाया है जिनको वैसा ही सम्मान करना आता है जैसा पिछले 5 साल पूर्व हुआ था, वार्ड नंबर 2 के बीजेपी प्रत्यासी ने तो पिछले बार अपने वोटरों की तुलना कुत्ते से करते हुए कुत्ते को ही अच्छा बताते हुए उसे मिठाईयां खिलाई गई थीं।
कुछ लोग आज भी ऐसे है जिनका जमीर जिंदा है और वो उस कार्यालय में अपना कदम रखना नही चाहते। पर ऐसे नेताओं की जरूरत न तो जनता को है न पार्टियों को।
फिर भी ये पब्लिक है ये सब जानती है। अब इसका फैसला भी जनता को ही लेना है की उनको कैसा नेता चाहिए, और वो किसको जीत का ताज उनके सिर पर डालकर नगर परिषद में भेजते हैं,देखना दिलचस्प होगा।
बहरहाल जब चुनावी मुद्दों का जायजा लेने मीडिया कि टीम नगर पालिका परिषद जैतहरी अंतर्गत कई वार्डों में चुनावी माहौल और नागरिकों कि मंशा देखने और उनसे जानकारी लेने पहुंची तब नागरिकों ने विकास कार्य कितना हुवा है और कितनी स्वच्छता नगर पालिका परिषद अंतर्गत देखने मिलती है को मुद्दा और शासन कि कई योजनाएं जिसपर नगरवासियों को वंचित रखा गया कि बातों को बताते हुए नई परिषद लाने कि बातें कहते हुए परिवर्तन कि बात कही।
अब कौन जीतेगा और कौन हारेगा यह तो वोटिंग होने के बाद ही पता चलेगा पर वर्तमान समय में चुनावी लहर कांग्रेस और अन्य पार्टी के प्रत्यासियों कि ओर दिख रही है तो वही कुछ लोग भाजपा प्रत्यासियों को ही चुनने कि बात कह रहे हैं। पर इनमे सबसे दिलचस्प बात यही है कि लोगों ने नगर पालिका परिषद जैतहरी के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के विकास कार्यों के नाम पर किए गए दिखावे कि चर्चाओं को पूरे परिषद् में फैलाई है जिसपर नगरवासियों ने उपाध्यक्ष के तानाशाह, हिटलर जैसे रवैए को और बस स्टैंड के समीप तालाब और नालियों के कितने साफ हैं को लेकर काफी चर्चा की। बहरहाल चुनाव के बाद ही पता चलेगा कि किसकी परिषद् बनती है और किसे जनता जिताकर वापस लाती है देखना दिलचस्प होगा?




