*प्रशासन की लापरवाही 4 वर्ष से दोषमुक्त, 7 वर्ष से निलंबित शिक्षक नही हो पाया बहाल*
अनुपपूर जिला मध्य प्रदेश

प्रशासन की लापरवाही 4 वर्ष से दोषमुक्त, 7 वर्ष से निलंबित शिक्षक नही हो पाया बहाल
क्या आदिवासी विभाग के लाल फीताशाही या षडयंत्र का हुआ शिकार, सेवानिवृत्त के कगार पर पीड़ित शिक्षक आर्थिक एवं मानसिक रूप से परेशान
रिपोर्टर – चंद्रभान सिंह राठौर संभागीय ब्यूरो चीफ
अनूपपुर
शासकीय विद्यालय में पदस्थ निलम्बित शिक्षक लगभग 7 वर्ष होने वाले वाले हैं मगर आज दिनांक तक शिक्षक को कलेक्टर सहायक आयुक्त आदिवासी विकास विभाग अनूपपुर बहाल नही कर पाया है जब कि पीड़ित शिक्षक के ऊपर 2 आपराधिक मामले दर्ज हुआ था जिस पर उन्हें निलंबित किया गया था एक मामले में न्यायालय दोषमुक्त कर चुका है और एक मामला राज्य शासन वापस ले चुका है उसके बाद भी पीड़ित शिक्षक को बहाल करने का कोई कदम नही उठाया जा रहा हैं। पीड़ित शिक्षक न्यायालय के आदेश के 4 वर्ष बाद भी न्याय के लिए दर दर भटकने को मजबूर हैं शिक्षक की सुनवाई कही नही हो पा रही हैं। जब कि सेवानिवृत्त होने के सिर्फ लगभग 3 वर्ष ही बचे हैं। सहायक आयुक्त आदिवासी विभाग के कार्यालय में लाल फीताशाही रवैये के कारण एक पीड़ित को न्याय नही मिल पा रहा हैं। विभाग का कामकाज देखकर यह प्रतीत होता हैं कि सेवानिवृत्त होने के बाद ही बहाली हो पाएगी।
क्या है मामला
प्राचार्य शासकीय उ.माध्यमिक विद्यालय चोलना के पत्र क्र./245 दिनांक 19 मार्च 2015 के माध्यम से जिला बिलासपुर के पत्र./348 दिनांक 18 मार्च 2015 द्वारा प्रति जानकारी के अनुसार हरिशरण द्विवेदी पिता जानकी प्रसाद द्विवेदी निवासी सिवनी के विरूद्ध न्यायिक दंडाधिकारी प्रथम श्रेणी मरवाही जिला बिलासपुर के प्रकरण क्रमांक 66/09 धारा 294, 323, 342, 458 भा.द.वि. के प्रकरण में स्थाई गिरफ्तारी वारेंट एवं थाना मरवाही अपराध क्रमांक 21/15 धारा 147, 148, 294, 506, 323, 342, 458 भा.द.वि. के प्रकरण में दिनांक 19 मार्च 2015 को गिरफ्तार किया गया है तथा न्यायिक दंडाधिकारी प्रथम श्रेणी मरवाही जिला बिलासपुर के न्यायालय में पेश किया गया है जो न्यायालय द्वारा जेल अभिरक्षा में पेण्ड्रा रोड़ गौरेला उप जेल भेजा गया था। हरिशरण द्विवेदी, शिक्षक शासकीय उ.मा.वि. बालक चोलना जिला अनूपपुर को 24 घण्टे से अधिक समय से न्यायिक अभिरक्षा में रखे जाने के फलस्वरूप म.प्र. सिविल सेवा (वर्गीकरण नियंत्रण तथा अपील 1966 के नियम 9 (2) के तहत दिनांक 9 मार्च 2015 से निलंबित मान्य करते हुये निलंबन अवधि में मुख्यालय कार्यालय विकासखण्ड शिक्षा अधिकारी जैतहरी जिला अनूपपुर नियत किया जाता है। निलंबन अवधि में नियमानुसार जीवन निर्वाह भत्ता देय होगा।
दोषमुक्त होने के बाद भी पीड़ित न्याय की आस में लगा रहा हैं कार्यालय के चक्कर
हरिशरण द्विवेदी के ऊपर आपराधिक प्रकरण दर्ज होने के बाद जेल जाने पर निलंबित किया जाना बिल्कुल सही हैं मगर 17 दिसंबर 2017 को न्यायालय अपर सत्र न्यायाधीश पेण्ड्रा रोड़ जिला बिलासपुर के फैसले में पूरी तरह दोषमुक्त किया गया था दोषमुक्त होने के बाद भी 4 वर्ष बीत जाने पर अभी तक बहाल न किया जाना प्रशासन की कही न कही कमी को दर्शाता हैं जबकि पीड़ित कर्मचारी लगातार कई वर्षों से सहायक आयुक्त आदिवासी विकास विभाग एवं कलेक्टर महोदय को कई बार पत्र लिखकर बहाली के लिए निवेदन कर चुका हैं मगर अधिकारियों के कान में जूं तक नही रेंग रही हैं। आदिवासी विभाग और कलेक्टर विभाग में लालफीताशाही के कारण फ़ाइल धूल खाते हुए आलमारी में पड़ी है जिसके कारण कार्यवाही नही हो पा रही हैं। जिले में बैठे आला अधिकारी के पास कार्यवाही के लिए फ़ाइल और शिकायत पहुच नही रही हैं या जानबूझकर मामले को उलझा कर बहाली करने से बच रहे हैं इससे अधिकारियों को क्या लाभ होने वाला है ये तो वो ही बता सकते है।
कलेक्टर बहाली के लिए लिख चुके हैं पत्र
पीड़ित कर्मचारी के 2015 में निलंबित होने के बाद आयुक्त आदिवासी विभाग भोपाल द्वारा हरिशरण द्विवेदी के बहाली के लिए कलेक्टर अनूपपुर से पत्र के माध्यम से अभिमत मांगा गया था जिस पर कलेक्टर अनूपपुर ने आयुक्त आदिवासी विभाग भोपाल को 20 सितम्बर 2016 को पत्र लिखकर लेख किया गया था कि हरिशरण द्विवेदी के ऊपर कोई विभागीय मामला नही है। आपराधिक मामला दर्ज है जो कि छत्तीसगढ़ राज्य का मामला है इसलिए इन्हें बहाल करने पर साक्ष्य को प्रभावित करने का कोई अंदेशा नही है इस समय अनूपपुर जिले में 204 शिक्षकों का पद रिक्त हैं और शिक्षकों की कमी के कारण विद्यालय में पढ़ाई अच्छे से नही हों पा रही हैं इस कारण से इन्हें बहाल करके इनसे शैक्षणिक कार्य लिया जा सकता हैं। लेकिन कलेक्टर के बहाली के लिए लिखे पत्र को 5 वर्ष बीत जाने के बाद भी अभी तक बहाली नही हो पाई हैं।
क्या कहता हैं नियम
किसी भी शासकीय सेवा में पदस्थ कर्मचारी के ऊपर आपराधिक प्रकरण दर्ज होने और 48 घंटे से ज्यादा समय तक जेल जाने पर कर्मचारी को निलंबित कर दिया जाता हैं और अगर निलंबित कर्मचारी के मामले में 3 वर्ष पश्चात भी न्यायालय से फैसला नहीं आता है तो उस निलंबित कर्मचारी को बहाल कर दिया जाता हैं। और फैसला होने के आधार पर ही बाद में कार्यवाही की जाती हैं।
गंभीर मामले में 1 वर्ष में हो गयी बहाली
अनूपपुर जिले में कई बड़े और गंभीर मामले भ्रष्टाचार, गबन, के मामले में कोर्ट से जमानत के बाद 1 वर्ष पश्चात कर्मचारियो को बहाल कर दिया गया है जब कि नियम यह कहता है कि ऐसे मामलों में चार्ज शीट दाखिल होने के बाद जब तक कोई कर्मचारी कोर्ट से दोषमुक्त नही हो जाता तब तक ऐसे कर्मचारियों की बहाली नही की जा सकती मगर कुछ अधिकारियों के द्वारा नियमो को ताक में रखकर एक तरफा फैसला कर देते हैं और जो व्यक्ति सही में बहाली के पात्र हैं उनको कई वर्षों से कार्यालय के चक्कर कटवाया जा रहा हैं। क्या ये नियम कानून अधिकारियों की मर्जी से चलते है। ऐसे अधिकारियों की लापरवाही से पीड़ित कर्मचारियों को समय से न्याय नही मिल पाता।
बिना चढ़ोत्तरी के नहीं होता कोई काम
सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार सहायक आयुक्त आदिवासी विकास विभाग में जिस कर्मचारियों को अगर काम कोई भी काम करवाना हो जब तक वहाँ पर बैठे बाबुओं को चढ़ोत्तरी नही चढ़ाओ तब तक कोई भी काम की फ़ाइल अगली टेबल तक नहीं पहुँचती जब कि वहाँ पर बैठे आला अधिकारियों को सब कुछ ज्ञात होता हैं मगर वो कुछ कर पाने में असमर्थ रहते है जैसे इन लोगो की मूक सहमति हो ऐसे अधिकारियों और बाबुओं के रहते कोई भी काम हो सकता आसानी से होना मुश्किल है। ऐसे में कर्मचारियो को कार्यालय के चक्कर लगाते लगाते थक जाते है उन कर्मचारियो के काम बहुत जल्दी हो जाते है जिनके द्वारा काम के अनुसार चढ़ोत्तरी चढ़ा दी जाती हैं।