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जनकपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में अनियमितताओं की गूंज आरटीआई से खुल रही है भ्रष्टाचारियों की पोल

तहसील भरतपुर जिला मनेंद्रगढ़ छत्तीसगढ़

जनकपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में अनियमितताओं की गूंज आरटीआई से खुल रही है भ्रष्टाचारियों की पोल

(पढिए जिला एमसीबी ब्यूरो चीफ मनमोहन सांधे की खास खबर)

जनता के अधिकारों की अनदेखी, सूचना देने से बच रहे अधिकारी

भरतपुर (कोरिया), 13 अक्टूबर | आरएनएस न्यूज़ रिपोर्ट
जिला एमसीबी भरतपुर के विकासखंड जनकपुर अंतर्गत सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र जनकपुर में लगातार बढ़ रही अनियमितताओं को लेकर अब सवाल उठने लगे हैं।

आज जिला पंचायत सदस्य श्रीमती सुखमनती सिंह ने स्वास्थ्य केंद्र का निरीक्षण किया।

निरीक्षण के दौरान उन्होंने शासन-प्रशासन पर आरोप लगाया कि शासकीय राशि का आहरण तो किया जा रहा है,

लेकिन उसका सही उपयोग नहीं दिख रहा, और जब इन मुद्दों पर जवाब मांगा जाता है तो संबंधित अधिकारी टालमटोल रवैया अपनाते हैं।

स्वास्थ्य सेवाओं में लापरवाही और फर्जी खर्च का आरोप

स्थानीय सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार, जनकपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में लंबे समय से कई प्रकार की अनियमितताएँ चल रही हैं

जिनमें दवाइयों की आपूर्ति में कमी, उपकरणों की मरम्मत कार्यों में गड़बड़ी, फर्जी बिलिंग और शासकीय खर्चों में गंभीर वित्तीय अनियमितताएँ शामिल हैं।

स्थानीय नागरिकों का कहना है कि यदि मांगी गई जानकारी सार्वजनिक नहीं की जा रही, तो यह निश्चित तौर पर किसी बड़े गड़बड़ी को छिपाने की कोशिश हो सकती है।

आरटीआई आवेदक का आरोप — “सूचना नहीं देना भ्रष्टाचार को बढ़ावा देना है”

सूचना के अधिकार (RTI) के तहत मांगी गई जानकारी न मिलने पर आरटीआई कार्यकर्ताओं में रोष है।
एक आवेदक ने बताया कि उन्होंने केंद्र में चल रहे कार्यों और खर्चों से जुड़ी जानकारी के लिए **सूचना शुल्क नियमानुसार जमा किया था, लेकिन विभाग द्वारा न तो जानकारी दी गई और न ही देरी का कोई कारण बताया गया।

यह रवैया सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 7(1) का स्पष्ट उल्लंघन है, जिसमें यह प्रावधान है कि आवेदक को 30 दिनों के भीतर सूचना देना अनिवार्य है।
सूचना न देना न केवल कानून का उल्लंघन है, बल्कि यह विभाग में भ्रष्टाचार और गोपनीयता के दुरुपयोग की ओर संकेत करता है।

आरटीआई कार्यकर्ताओं की माँग नियमों में संशोधन और दोषियों पर FIR की कार्यवाही

आरटीआई कार्यकर्ताओं ने कहा कि –

जब नागरिक निर्धारित शुल्क जमा कर अपने अधिकार के तहत जानकारी मांगता है, तो अधिकारी का कर्तव्य है कि वह नियत समय में सूचना उपलब्ध कराए। सूचना न देना सीधा उल्लंघन है और यह भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने का तरीका है।”

उन्होंने मांग की है कि आरटीआई नियमों में आवश्यक संशोधन किए जाएं, ताकि सूचना न देने वाले और नियमों की अनदेखी करने वाले अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर कठोर कार्यवाही की जा सके।

मामला पहुँचेगा राज्य सूचना आयोग तक

आरटीआई कार्यकर्ताओं ने संकेत दिया है कि यह पूरा मामला अब राज्य सूचना आयोग के समक्ष उठाया जाएगा, ताकि संबंधित अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक और कानूनी कार्यवाही की जा सके।
साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि विभागीय पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए नियमों को और सख्त बनाना आवश्यक है, जिससे भविष्य में जनता की सूचना संबंधी अधिकारों की अनदेखी न हो सके।

जिला प्रशासन से जवाब की प्रतीक्षा

इस पूरे मामले पर जब स्वास्थ्य विभाग से प्रतिक्रिया चाही गई, तो संबंधित अधिकारियों ने कोई स्पष्ट जवाब देने से परहेज़ किया।

जनता और जनप्रतिनिधियों का कहना है कि यदि जल्द ही इस प्रकरण में जाँच और कार्यवाही नहीं हुई, तो मामला और गंभीर रूप ले सकता है।

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