एकलव्य विद्यालय में बड़ा घोटाला: प्राचार्य ने निजी SUV को कागज़ों में एंबुलेंस बनाकर किया अनुबंध, प्रतिमाह 35 हज़ार की उठाई रकम
जिला मनेंद्रगढ़ छत्तीसगढ़

एकलव्य विद्यालय में बड़ा घोटाला: प्राचार्य ने निजी SUV को कागज़ों में एंबुलेंस बनाकर किया अनुबंध, प्रतिमाह 35 हज़ार की उठाई रकम
18 सितम्बर 2025, दोपहर 2:06 बजे | मनेंद्रगढ़
(पढिए जिला एमसीबी ब्यूरो चीफ मनमोहन सांधे की खास खबर)
छत्तीसगढ़ राज्य मनेंद्रगढ़ जिले के एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय जनकपुर में भ्रष्टाचार का एक चौंकाने वाला मामला उजागर हुआ है।
विद्यालय के प्राचार्य राजेश कुमार शर्मा ने अपनी ही निजी SUV गाड़ी को कागज़ों में एंबुलेंस घोषित कर विद्यालय में अनुबंधित कर लिया है।
इस गाड़ी के नाम पर प्रतिमाह ₹35,000 किराया स्वीकृत किया गया, जिसका भुगतान सीधे उनके बेटे शिवेश कुमार शर्मा के खाते में हो रहा है।
फर्जी एंबुलेंस से छात्रों की सुरक्षा पर संकट
सरकारी नियमों के अनुसार, एकलव्य विद्यालयों में छात्रों की आकस्मिक चिकित्सा सुविधा के लिए मानक एंबुलेंस उपलब्ध होना अनिवार्य है।
ऐसी एंबुलेंस में स्ट्रेचर, ऑक्सीजन सिलेंडर और प्राथमिक चिकित्सा उपकरण मौजूद होने चाहिए।
लेकिन प्राचार्य ने इन नियमों को ताक पर रखकर अपनी निजी गाड़ी को ही एंबुलेंस घोषित कर दिया। नतीजतन, विद्यालय में बच्चों के लिए आपात स्थिति में कोई वास्तविक एंबुलेंस उपलब्ध ही नहीं है।
यह केवल सरकारी धन के दुरुपयोग का मामला नहीं, बल्कि छात्रों की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ भी है। यदि किसी छात्र की तबीयत अचानक बिगड़ जाए, तो उसे समय पर उचित उपचार मिलना मुश्किल हो सकता है।
कागज़ी खेल और विभागीय मिलीभगत का आरोप
मामले की जाँच में यह सामने आया है कि इस तथाकथित एंबुलेंस का भुगतान सीधे प्राचार्य के बेटे के बैंक खाते में किया गया।
यही नहीं, यह कागज़ी खेल पिछले कई महीनों से चल रहा है और अब तक लगभग 3.5 लाख रुपये से अधिक की रकम विद्यालय के नाम पर फर्जी वाहन को दी जा चुकी है।
स्थानीय लोग और विद्यालय से जुड़े अभिभावक सवाल उठा रहे हैं कि आखिर ट्राइबल विभाग और जिला प्रशासन ने इस गंभीर लापरवाही पर अब तक कोई कार्यवाही क्यों नहीं की। क्या विभागीय अफसर इस खेल से अनजान हैं या फिर यह पूरा मामला मिलीभगत का नतीजा है?
10 माह से दबा पड़ा मामला
जानकारी के मुताबिक, यह अनुबंध करीब 10 माह पहले किया गया था।
इतने लंबे समय तक यह घोटाला चलता रहा और किसी भी अधिकारी ने जांच या आपत्ति दर्ज नहीं की। अब जब मामला सार्वजनिक हुआ है, तो लोगों में भारी आक्रोश है।
बड़ा सवाल: होगी कार्यवाही या मामला दबाया जाएगा?
इस खुलासे ने न केवल प्राचार्य की कार्यशैली पर सवाल खड़े किए हैं बल्कि ट्राइबल विभाग की कार्यप्रणाली भी कटघरे में है।
* क्या सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत से यह भ्रष्टाचार हुआ?
* क्या छात्रों की सुरक्षा को दांव पर लगाकर निजी स्वार्थ पूरे किए जा रहे हैं?
* और सबसे बड़ा सवाल – अब इस मामले पर कार्यवाही होगी या जिम्मेदारों को बचाने के लिए फाइलें दबा दी जाएंगी?
यह मामला छात्रों की सुरक्षा और सरकारी धन दोनों से जुड़ा है, इसलिए जिले के जिम्मेदार अधिकारियों को तत्काल संज्ञान लेकर जांच और कठोर कार्यवाही करनी चाहिए।